जवानी में बुढ़ापा आते हुए देखा |
देखा न तो बस सपने को हकीकत में बदलते
जो बनाया था उसे उजड़ते देखा |
दुनिया की निभाईं सारी रस्में
खुदी को दुसरे के लिए जलाते देखा |
हर किसी ने माँगा जो उसे लगा अच्छा
न देखा तो बस किसी ने मुझे उजड़ते देखा |
नए मकाम मिले तो खुश भी होना था
पर जो दिल के करीब था उसे जाते हुए भी देखा |
अब किस से कहें क्या है कमी
एक अरसा हुआ खुद को मुस्कुराते देखा |
न जाने किस राह पर चल पड़े हैं
कोई फिकर भी नहीं,
देखा तो बस कल, आज और आज का कल देखा |